[ २ ] दिनों यहाँ का वैभव कितना बढ़ा चढ़ा था और वह किस प्रकार 'एक ओर बर्वर हूणों के बाहरी आक्रमण तथा दूसरी ओर वैदिक 'धर्म में द्वेप रखनेवाले बौद्धों के आन्तरिक आक्रमण के कारण नष्ट हुआ। इसके मूल लेखक इतिहास के बहुत बड़े ज्ञाता और पंडित हैं : इसी लिये वे गुप्त-कालीन भारत का यथा तथ्य चित्र खींचने में बहुत अधिक सफल हुए हैं। यह उपन्यास जितना ही ऐतिहासिक घटनाओं से पूर्ण है, उतना ही मनोरंजक भी है। पृष्ट संख्या सवा छः सौ के लगभग ; मूल्य ३॥) [३] शशांक अनुवादक-श्रीयुक्त पं० रामचंद्र शुक्ल .. यह भी श्री राखालदास बंद्योपाध्याय का लिखा हुआ और करुणा की ही तरह का परम-मनोहर ऐतिहासिक उपन्यास है। यह भी गुप्त साम्राज्य के ह्रास-काल से ही संबंध रखता है और इसमें सातवीं शताब्दी के आरंभ के भारत का जीता जागता, सामाजिक और ऐतिहासिक चित्र दिया गया है। जिन लोगों ने करुणा को पढ़ा है, उनसे इस संबंध में और कुछ कहने को आव. श्यकता नहीं। पर जिन लोगों ने उसे नहीं देखा है, उनसे हम यही कहना चाहते हैं कि इन दोनों उपन्यासों के जोड़के ऐतिहा- सिक उपन्यास आपको और कहीं न मिलेंगे। मूल्य ३) .
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