पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२९

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[ २० ] हम यही समझते हैं कि भूपणजी सन् १७४० ई. के लगभग १०५ वर्ष की अवस्था में स्वर्गवासी हुए होंगे। इधर साहित्यप्रेमियों ने भूपणजी के विषय में नवीन ढूँढ़ खोज की और हमने भी बहुत कुछ नवीन ऐतिहासिक सामग्री एकत्र की। भूपणजी ने उन दारा- शिकोह के विभव का पूर्ण वर्णन किया है जिन्हें सन १६५८ या १६५९ में औरंगज़ब ने मरवा डाला था। इससे सन् १६५७ के लगभग इनके रचना-काल का आरम्भ समझ पड़ेगा। मिर्जा राजा जयसिंह और उनके पुत्र महाराज रामसिंह की प्रशंसा में भी इनके छंद मिले हैं । जयसिंह सन् १६२३ में आमेर (जयपुर) की गद्दी पर बैठे थे और रामसिंह सन् १६६७ में । महाराज अव. धूतसिंह सन् १७०० से १७५५ तक रीवाँ के नरेश रहे। ये केवल छः मास की अवस्था में गद्दी पर बैठे थे । इनकी प्रशंसा का भूषण-कृत एक बहुत बढ़िया छंद स्फुट कविता में लिखा है। यह सन् १७१५ के लगभग बना होगा । असोथर के महाराज भगवंतराय खीची सन् १७४० में मरे । उनकी मृत्यु पर शोक प्रकट करने वाला स्फुट छन्द नम्बर ८ भूपण कृत कहा जाता है। __ यद्यपि इस छंद की शैली कुछ कुछ तो भूपण की कविता से मिलती जुलती है, तथापि ऐसे प्रभावपूर्ण थोड़े बहुत छंद कई अन्य हिन्दी कवियों ने भी वनाए हैं। इस छंद को भूषण विषयक वाद में एक महाशय ने लिखा था, जिसमें पहले जसवंतराय का नाम लिखा था और पीछे भगवंतराय का बतलाया गया। छंद मध्य देश के किसी राजा का कथन करता है, किंतु भगवंतराय