[ २६ ] शाह कहलाते थे, जिनके राजस्थान यथाक्रम वीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर, एलिचपुर और विदर थे। उत्तर में मुग़लों का सुविशाल साम्राज्य था। उस समय श्रीनगर, नेपाल, मेवार, ढुंढार, मारवाड़, बुंदेलखंड, झारखंड और पूर्व पश्चिम सब देशों के राजे अर्थात् राना, हाड़ा, राठौर, कछवाहे, गौर इत्यादि सब मुगलों से दवते और उनकी प्रजा के समान थे। वे राज्य तो अवश्य करते थे, परंतु अपनी स्वतंत्रता खो बैठे थे। ऐसे भयावने समय में शिवाजी ने मुसलमानों का सामना करने का साहस किया। उनकी उच्च अभिलापा चक्रवर्ती राज्य स्थापित करने की थी । इस परिश्रम का यह फल हुआ कि उन्होंने बाल्यावस्था ही में वीजापुर तथा गोलकुंडा को जीतकर युवावस्था में दिल्लीपति को पराजित किया और उनके राज्य का प्रजा तथा हिंदू समाज पर यह प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा कि वेद पुराणों की चर्चा एवं द्विजदेवों की अर्चा की प्रथा फिर लोक में फैल गई। शिवाजी ने पहले वीजापुर के बादशाह से लड़ना आरंभ किया। सन् १६५५ में उन्होंने चंद्रावल (चंद्रराव मोरे) को मारकर जावली जन्त कर ली। फिर ये और छोटे छोटे दुर्ग लेते रहे। सन् १६५७ में शिवाजी ने अहमदनगर पर मुग़लों के सरदार नौशेरीखाँ तथा निकटस्थ राज्य में अपनी मृत्यु पर्यंत गवर्नरी ( शासन ) करते रहे। पीछे इनके द्वितीय पुत्र वेंकोनी तंजौर के स्वतन्त्र राजा हो गए थे। उनके वंशधरों से यह राज्य उन्नीसवीं शताब्दी में अंगरेजों ने छीन लिया। लार्ड डलहौजी ने तंजौर के राजा को पोलिटिकल ० पेन्शन भी बंद कर दी।
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