पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/४६

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[ ३७ ] परंतुं यह चोर नहीं, साह है। मरहटों ने उस समय भी धैर्य नहीं छोड़ा और शिवाजी के द्वितीय पुत्र राजाराम को राजा बना कर वे मुग़लों से लड़ने लगे। लड़ते लड़ते यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ दौड़ते हुए राजाराम यथासाध्य स्वतंत्रता की रक्षा करते रहे। थोड़े ही दिनों में राजाराम का भी शरीरांत हो गया, किंतु उनकी स्त्री ताराबाई ने अंत पर्यंत युद्ध करके महाराष्ट्र राज्य का रक्षण किया। ताराबाई शिवाजी के प्रसिद्ध सरदार प्रतापराय गृजर की पुत्री थी । मरहठे मुग़लों की बृहत सेना से सम्मुख नहीं लड़ सकते थे, परंतु इधर उधर लगे रहते थे। छोटे छोटे दलों को छिन्न भिन्न करके लूट लेते थे और सेना देख कर भाग जाते थे। इनका किसी खास स्थान पर राज्य नहीं रह गया था, परंतु जहाँ मुग़ल नहीं होते थे, वहीं ये लूट मार करते और वहीं के राजा से देख पड़ते थे। एक बार सन् १६९५ में भीमा नदी ने बढ़कर शाह के १२००० दल को डुबो दिया। औरंगजेब ने सत्ताईस वर्प उत्तर की भी कुल आय इसी दक्षिण के युद्ध में व्यय की, परंतु फिर भी कुल मरहठों को वह ध्वस्त न कर सका। एक बार इसकी फौज गड़बड़ दशा में थी। मरहठों ने एकाएक धावा करके उसे पूर्ण पराजय दे दी। औरंगजेब कुछ आगे था और उसके पास बहुत ही कम मनुष्य थे, परंतु दुर्भाग्यवश उसकी यह दशा मरहठों पर विदित न थी, नहीं तो वे उसे तुरंत बंदी कर लेते । इन विपत्तियों से मुग़ल सेना बहुत ही विकल और हताश हो गई और मरहठों के युद्ध-कौशल से मुग़ल विजय की आशा