[ ४० ] बुंदेलों का इतिहास सूर्यवंश में रामचंद्र और उनके पुत्र कुश के वंश में काशी और कंतित के गहिरवार राजा हुए। इस वंश का पूर्ण वर्णन चहुत से पूर्व पुरुपों के नामों समेत लाल कवि ने अपने छत्र- प्रकाश नामक ग्रंथ में किया है । इसी वंश में महाराज पंचमसिंह उत्पन्न हुए। उनके चारों भाइयों ने उनका राज्य छीन लिया और वे विंध्याचल पर जाकर विंध्यवासिनी देवी की उपासना करने लगे। एक दिन वे अपना ही बलिदान करने को प्रस्तुत हुए । कहा जाता है कि ज्यों ही उन्होंने अपने शरीर में एक घाव लगाया त्यों ही देवीजी ने प्रकट होकर उनका हाथ पकड़ लिया और उन्हें राज्य मिलने का वरदान दिया। उसी समय दैवीकृपा से उनके सिर से जो घाव द्वारा रक्तविंदु गिरा था उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम बुंदेला पड़ा। अस्तु जो कुछ हो । बुंदेला का वंश इस प्रकार चला- बुंदेला करण उपनाम । वलवंत सन् १६२७ में चंपति- राय और वीरसिंह- देव शाहजहाँ से लड़ने लगे। चंपतिराय का J बड़ा पुत्र सारवाहन अर्जुनपाल सहनपाल
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