[ ४४ ] "छत्रिन की यह वृत्ति सदाई । नित्य तेग को खायँ कमाई ॥ गाय वेद विप्रन प्रतिपालें । वाव ऐंड्धारिन पर घालें ॥ "तुम हो महाबीर मरदाने । करिही भूमि भोग हम जाने ॥ "जो इतही तुम को हम राखें । तो सब मुजस हमारो भाखें ।। "ताते जाय मुगल दल मारौ । सुनिये अवननि सुजस तिहारौ।। "यह कहि तेग मँगाय बधाई । वीर बदन दूनी दुति आई" ॥ (लालकृत छत्रप्रकाश) शिवाजी के आगरे से लौटने से कुछ ही दिन पीछे सन १६६७ में छत्रसाल उनसे मिले थे। शिवाजी से इस प्रकार प्रोत्साहित होकर छत्रसाल अपने देश में आए और सेना एकत्र करके मुग़लों से लड़ने लगे। सन् १६७१ ई० के लगभग इन्होंने बहुत सी लड़ाइयाँ जीत कर गढ़ाकोटा का जिला ले लिया और क्रमशः अपना प्रभुत्व प्रायः समस्त बुंदेलखंड पर जमा लिया। जब इन्होंने दक्षिण से जाता हुआ सौ गाड़ियों भर शाही सामान लूटा, तब औरंगजेब ने क्रोध करके तहौवरखाँ को एक बड़ी सेना लेकर भेजा, पर सिरावा के युद्ध में छत्रसाल ने उसकी सारी सेना काट डाली। उसने दूसरी सेना लेकर आक्रमण किया और सन १६८० में वह फिर पराजित हुआ। तदनन्तर छत्र- साल ने अनवरखाँ, सदल्दीन और हमीदखाँ को परास्त किया और बुंदेलखंड के उन राजाओं को भी, जो इनका साथ नहीं देते थे, खूब सताया । सन् १६९० में औरंगजेब ने एक बड़ी
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