[१७ ] शिवराज-भूषण इस ग्रंथ का नाम शिवराज-भूपण बड़ा ही समीचीन है। इसमें शिवराज का यश वर्णित है; अतः यह उनको भूपित करता है। यह भूपणों ( अलंकारों) का ग्रंथ है और इसे भूपणजी ने बनाया है। ये सभी बातें "शिवराज-भूपण" पद से पूर्णतया विदित हो जाती हैं। सब से पहले यह प्रश्न उठता है कि इसका ठीक निर्माण काल क्या है ? इतना तो निश्चय है कि यह सन् . १६७३ ईसवी में समाप्त हुआ; पर इसके प्रारंभ होने के विषय में निम्नलिखित चार बातें कही जा सकती है- (१) भूपणजी इस ग्रंथ के छंदों को स्फुट रूप से समय समय पर, बिना किसी अलंकारादि के विचार से, बनाते गए; और अंत में इतने छंदों को क्रमबद्ध कर के और कुछ नए छंद जोड़ कर उन्होंने इन्हें ग्रंथ रूप में कर दिया। (२) उन्होंने इसके छंद अलंकारों के विचार से ही समय समय पर बनाए और फिर उन्हें ग्रंथ रूप में परिणत कर दिया। (३) अपने आने के समय से ही इस ग्रंथ को इसी रूप में वनाना कवि ने प्रारंभ कर दिया और सन् १६७३ ई० में इसे समाप्त किया। (४) सन् १६७३ ई० ही में अथवा उसके कुछ ही पहले यह ग्रंथ बनना प्रारंभ हुआ और कुछ ही महीनों में समाप्त हो गया।
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