पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/६१

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[ ५२ ] हो सकता है। परंतु होना न चाहिए; क्योंकि वहाँ शब्द देश जीते नहीं लिखा है, वरन् विद्रूचे है, जिससे आफत या गड़वड़ का प्रयोजन है । सन् १६५९ में आपने परनालो लिया और १६६१-६२ में करनाटक में घोर विद्रोह हुआ। विठूचे का यही अभिप्राय है। पूर्वी करनाटक शिवाजी ने सन् १६७६-७८ में जीता किंतु पच्छिमी करनाटक में १६७३ के पूर्व लूट खसोट की थी। उसका भी इशारा इसमें समझा जा सकता है। मुद्रित प्रतियों में प्रायः तीन सौ छंद पाए जाते हैं, पर हमने 'शिवराज-भूषण की इस प्रति में ३८२ छंद दिए हैं। जितने 'छंद इस प्रति में बढ़े हैं, उनका मुख्यांश कवि गोविंद गिल्ला- भाईजी की हस्तलिखित प्रति से लिया गया है। गिल्लाभाईजी की प्रति में कई ऐसे अलंकारों के लक्षण और उदाहरण हैं जो भूषणजी की दी हुई अलंकार-नामावली (छंद नं० ३७१-३७९) के बाहर हैं। उन अलंकारों के लक्षणों को हमने भूषणकृत नहीं समझा; परंतु उदाहरणों को "शिवावावनी' एवं 'स्फुट" में रख दिया है। जान पड़ता है कि भूषण के इन कवित्तों में अलंकार निकलते देख लोगों ने इन्हें "शिवराजभूषण" में उन अलंकारों के लक्षण अपनी ओर से जोड़कर रख दिए। इन नए कवित्तों में से दो चार के विषय में हमें भूषण कृत होने में भी संदेह है। संभव है कि उन्हें किसी ने अपनी ओर से बना कर लिख दिया हो, पर शेष छंद अवश्य ही भूपण के प्रतीत होते हैं। .