[ २ ] इस ग्रंथ के छंद भूपण की कविता में सर्वोत्कृष्ट हैं, और _ 'एक भी छंद सिवाय उत्तम के मध्यम श्रेणी तक का इसमें नहीं है। भूपणने शिवराज और छत्रसाल सरीखे भारतमुखोचल. ‘कारी युगल मित्रों का वर्णन करके देशवासियों और हिंदी रसिकों का बड़ा उपकार किया है । यह बात प्रसिद्ध है कि भूपणजी जब महाराज शिवराज के यहाँ से सम्मानित हो छत्रसाल के यहाँ पधारे. तो इन्होंने कविजी का बहुत आदर सत्कार किया और चलते समय यह कह कर कि "अब हम आप को क्या विदाई दे सकते हैं !" उनकी पालकी का डंडा स्वयं अपने कंधे पर रख लिया ! तब भूपणजी अत्यंत प्रसन्न हो चट पालकी से कूद पड़े और "वस महाराज ! बस" कहते हुए उनकी प्रशंसासूचक कविता तत्काल बना चले। वही कवित्त छत्रसाल- दशक के नाम से प्रसिद्ध हुए; परंतु जान पड़ता है कि भूपणजी ने इस समय कोई और ही छंद बनाए होंगे। इस ग्रंथ के छंद किसी ग्रंथ रूप में नहीं बने क्योंकि न तो इनमें वंदना है, न -सन् संवत् का ब्योरा और न कोई क्रम विशेष, वरन् ये सुट कवित्त मात्र हैं और बाद को लोगों ने इन छंदों में भूपणकृत छत्रसाल विषयक दो एक और छंद मिलाकर "छत्रसाल दशक' नामक १०-१२ छंदों का "अन्य" पूरा कर दिया, क्योंकि इसमें छत्रसालजी बूँदो नरेश के भी दो छंद हैं, जिनको छत्रसाल बुंदेला के ग्रंथ में न होना चाहिए था। यह छोटा सा ग्रन्थ ओज-प्राबल्य में एकदम अद्वितीय है।
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