पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/७३

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[ ६४ ] छत्रसाल से कई साल बड़े थे। वे बुंदेला महाराज को 'डोकरा" कभी न कहते । यह छंद किसी छोटी अवस्था के कवि ने बनाया है। इसमें भूपण का नाम भी नहीं है । भूषा की कविता का परिचय हम भूपण महाशय के चारो ग्रंथों के विषय में अलग अलग अपने विचार प्रकट कर चुके । अत्र चारो ग्रंथ मिला कर इनकी समस्त रचना पर जो कुछ विशेष कयनीय है, वह नीचे लिखा जाता है। भाषा-इनको भाषा विशेषतया ब्रजभाषा है, जैसी कि उस समय के प्रायः सभी कवियों की थी । जान पड़ता है कि उस समय के कुछ महाराष्ट्रवासी भी हिंदी भाषा को भली भाँति समझते थे, नहीं तो भूपण की कविता का ऐसा आदर शिवाजी की सभा में कैसे होता ? युद्धकाव्य लिखने के कारण भूपणजी को ब्रजभाषा के साथ प्राकृत मिश्रित भाषा भी लिखनी पड़ी है, तथापि इन्होंने उस समय के अन्य युद्ध-काव्य रचयिताओं से बहुत कम इस भाषा का प्रयोग किया है। यह भूपण के कवित्व-शक्ति-संपन्न होने का प्रमाण है। वीर कविता में अन्य कवियों को प्राकृत भाषा का अधिक प्रयोग करना पड़ा है। फिर अन्य कवियों की युद्ध कविता में माधुर्य और प्रसाद गुणों की बड़ी न्यूनता रहती है। परंतु भूषण महाशय इन गुणों को भी अपनी कविता में बहुतायत से ला सके हैं।