[ ७१ ] कि सिर शेप देह के पीछे हो गया। तब उसने पहले अपना पैर अंदर रख के कुल देह अंदर निकाल कर तब सर फाटक के भीतर किया जिससे कि उसे सिर झुकाना नहीं पड़ा। टाँड राजस्थान में लिखा है कि सिरोही के महाराज ने लगभग सन् १६८० ई० में औरंगजेब के ही राजत्व काल में बिलकुल ऐसा ही किया। इससे विदित होता है कि उस समय भी दरबार में जाकर अकड़ के कारण सलाम न करना संभव था । इसी प्रकार मारवाड़ के प्रसिद्ध अमरसिंह ने शाहजहाँ के सामने उसके मुसाहब सलाबतखाँ को दरवार ही में मारडाला था। तब शाह जहाँ मारे डर के ज़नाने में भाग गया था। अतः शिवाजी ने सलाम न क्रिया हो तो कोई आश्चर्य नहीं। फिर भी तकाखव तक में सलाम किया जाना लिखा है । भूपणजी जब अपने नायक की ख्याति बढ़ाने को कोई असंभव अथवा असत्य बात कहते थे, तो उसे एकाध बार दबी जवान कहकर छोड़ देते थे (शि० भू० नं० ६२) और बार बार बड़ा जोर देकर नहीं कहते थे। फारस के अब्बास शाह से शिवाजी से कभी लड़ाई नहीं हुई। अतः एक बार कहकर फिर भूषण ने उसका नाम भी न लिया ; परंतु इस गुसलनाने के विषय में कई छंद बड़े जोर के कहे हैं और यही हालत सलाम की है। इतिहास भी इन बातों का बहुत कुछ समर्थन करता है । भूपण के कथन में केवल एक स्थान पर इतिहास से प्रतिकूलता पाई जाती है और वह यह है कि इतिहासों ने शिवाजी को भवानी का भक्त माना है और
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