पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/८१

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[ ७२ ] भूषण ने शिव का (शि० भू० नं०१४,१५८, २३६,३२६, देखिये)। इसके विषय में एक बहुत बड़ा आश्चर्य यह होता है कि भूषणजी स्वयं भवानी के भक्त थे (शि० सू० नं० २ देखिए) और कहा जाता है कि उनके पिता के चार पुत्र भवानी ही की कृपा से हुए थे। तव यदि शिवाजी भी भवानी के भक्त होते तो भूषण ऐसा क्यों न कहते ? भूपण ने शिवाजी को सिवाय शिव के और किसी का भक्त नहीं बताया है। इधर कई इतिहासों के अतिरिक्त स्वयं रानड़े महोदय ने उन्हें भवानी का भक्त कहा है । हमारे अनुमान में भूषण ने किसी गुप्त कारण से (जैसे शिवाजी की आज्ञा से) ‘अपनी कविता में भवानी का वर्णन नहीं किया। शिवाजी भवानी और शिव दोनों के भक्त थे। भूषण ने शिवाजी की और बड़ाइयों में उन्हें अवतार भी माना है (शि० भू० नं० ११, १२, ७५, ८७, १०४, १४२, १६६, २२८, २९५, ३१३, ३४८, ३८१, देखिए)। यों तो प्रत्येक मनुष्य में आत्मा परमेश्वर का अंश है, और इसलिये हर आदमी अव- तार कहा जा सकता है; परंतु भूषण ने शिवाजी को कई बार हरि का अवतार कहा है। ऐसा करने में भूषण ने ठकुरसोहाती को सीमा के पार पहुंचा दिया । शि० भू० नं० ३२६ में शिवराज का बहुत ही यथार्थ वर्णन पाया जाता है। इनकी कविता की उदंडता दर्शनीय है। इन्होंने शिवाजी की चढ़ाइयों का वड़ा उदंड एवं शत्रुओं पर उनके प्रभाव का बड़ा भयानक वर्णन किया है।