पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/८६

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[ ७७ ] भूषण के विपय में शिवसिंह सेंगर का मत यह है-'रौद्र, वीर, भयानक ये तीनों रस जैसे इनके काव्य में हैं, ऐसे और कवि लोगों की कविता में नहीं पाये जाते"-( इन्होंने ) “ऐसे ऐसे शिवराज के कवित्त बनाये हैं जिनके वरावर किसी कवि ने वीर यश नहीं बना पाया।" इनकी युद्ध कविता के विषय में इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इन्होंने सर वाल्टर स्काट की भाँति किसी युद्ध का पूरा वर्णन नहीं किया। स्यात् इनकाः ध्यान इस ओर कभी आकृष्ट नहीं हुआ, नहीं तो जब ये महा- राज शिवराज के साथ रहा करते थे और कितने ही युद्ध इन्हों ने अपने नेत्रों से देखे होंगे, तब उनका वर्णन करना इन जैसे बड़े कवि के लिये कितनी बात थी ! यह हिंदी साहित्य का दुर्भाग्य था कि इन महाशय ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। आज कल कतिपय महाराष्ट्र महानुभाव हिंदी की अच्छी सेवा कर रहे हैं, सो मानों उनके उत्साह वर्द्धनार्थ भूपण ने पहले ही से हिंदी में महाराष्ट्र-कुल-चूड़ामणि महाराज शिवाजी का यश वर्णन कर रक्खा है। जैसे अपने नायकों को प्रशंसा में भूषण ने केवल कोरी वड़ाई न करके सत्य घटनाओं का वर्णन किया है, वैसे ही यदि अन्य कविगण भी करते तो हिंदुओं की ओर से भी भारतवर्ष का यथार्थ इतिहास लिखने में कोई कठिनाई न पड़ती। इस कवि की नरकाव्य करने में कुछ ऐसी हथौटी सी बंध गई थी कि जिसका यह यश वर्णन करता था, उसका रोम रोम प्रफुल्लित हो जाताथा। इसी कारण इनका हर जगह असाधारण सत्कार होता था।