पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/९

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है। भूमिका तथा टिप्पणी दोनों में प्रचुरता से संशोधन किया गया है। नए नोट भी बहुत कुछ बढ़ाये गए हैं। नवीन ऐतिहासिक खोजों से कुछ प्राचीन छन्दों के नए अर्थ भी समझ पड़े हैं जो नोटों में लिखे गए हैं। कुछ नए छन्द भी प्राप्त हुए हैं जो सुट छन्दों में सन्निविष्ट हुए हैं। महाकवि भूषण के समय पर भी बहुत कुछ नया विचार हुआ और इनके तीन भ्राताओं से इनके सन्बन्ध पर भी कुछ सजनों ने सन्देह प्रकट किया था, सो इस विषय पर भी श्रम किया गया है। इसी विषय पर अपने नवीन ग्रन्थ सुमनोञ्जलि के द्वितीय खण्ड में हम तीन बड़े लेखों में अपना मत प्रकट कर चुके हैं । यह ग्रन्थ प्रयाग के वेलवेडियर प्रेस ने हाल ही में प्रकाशित किया है। उन लेखों का सारांश इस ग्रंथ में भी उचित स्थानों पर आ गया है। इस बार भूपण ग्रन्थावली का यह नवीन (पाँचवाँ) संस्करण यथासाध्य बहुत ही शुद्ध करके छापा जाता है। आशा है कि पाठकों को इससे और भी अधिक लाभ उठाने का अवसर मिलेगा। हिन्दी समाज ने हमारे इस ग्रन्थ मन्वन्धी परिश्रम को सफल करने में पूरी कृपा दिखलाई है । यह ग्रन्थ कई कक्षाओं में पाध्य ग्रन्थ भी नियत है । इस ग्रन्थ का इतना मान बढ़ाने पर हम हिन्दी की विद्वन्मण्डली को अनेकानेक धन्यवाद देते हैं। सं० १९९६ मिश्रवन्धु ।