पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/९३

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[ २ ] छप्पय अथवा पटपदः जै जयंति जै आदिसकति जै कालि कपर्दिनि । जै मधुकैटभ छलनि देवि जै महिप विमर्दिनि ।। जै चमुंड जै, चंड मुंड भंडासुर खंडिनि । जै सुरक्त जै रक्तवीन विडाले विहंडिनि ।। जै जै निसुंभ सुंभदलनि भनि भूपन जै जै भननि । सरजा समत्य सिवराज कह देहि विजै जै जग-जननि ॥२॥ दोहा तरनि जगत जलनिधि तरनि जै जै आनँद ओक । कोक कोकनद सोकहर, लोक लोक आलोकं ।। ३ ।। अथ राजवंश वर्णन राजत है दिनराज को वंस अवनि अवतंस । जामें पुनि पुनि अवतरे कंसमथन प्रभु अंस ॥ ४॥ १ इस छंद में ६ पद होते हैं जिनमें प्रथम चार काव्य छंद और मंतिम दो उल्टाला होते हैं। काव्य छंद में प्रत्येक पद २४ कला (मा) का होता है और उसकी ११ वी कला पर प्रथम यति होती हैं। पद चार होते हैं। उल्लाला छंद २८ कला का होता है जिसमें प्रथम यति १५ वीं कला पर होती है। २ चामुंडा देवी जी । विडाल की कथा दुर्गा में है और भंडार की उपपुराण में। ३ "प्रथम कला तेरह धरौ पुनि गेरह गनि लेडु। पुनि तेरह गेरह गनौ दोहा लच्छन एहु" । लघु अक्षर की एक कला ( मात्रा) होती है और गुरु की दो। ४ सूर्य । ५ नौका । ६ रोशनी अथवा दर्शन।