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भ्रमरगीत-सार
 


राग धनाश्री
लरिकाई को प्रेम, कहौ अलि, कैसे करिकै छूटत?

कहाँ कहौं ब्रजनाथ-चरित अब अँतरगति[१] यों लूटत॥
चंचल चाल मनोहर चितवनि, वह मुसुकानि मंद धुनि गावत।
नटवर भेस नंदनंदन को वह बिनोद गृह बन तें आवत॥
चरनकमल की सपथ करति हौं यह सँदेस मोहिं बिष सम लागत।
सूरदास मोहि निमिष न बिसरत मोहन सूरति सोवत जागत॥३४॥


राग सोरठ
अटपटि बात तिहारी ऊधो सुनै सो ऐसी को है?

हम अहीरि अबला सठ, मधुकर! तिन्हैं जोग कैसे सोहै?
बूचिहि[२] खुभी[३] आँधरी काजर, नकटी पहिरै बेसरि[४]
मुँडली पाटी पारन चाहै, कोढ़ी अंगहि केसरि॥
बहिरी सों पति मतो[५] करै सो उतर कौन पै पावै?
ऐसो न्याव है ताको ऊधो जो हमैं जोग सिखावै॥
जो तुम हमको लाए कृपा करि सिर चढ़ाय हम लीन्ह।
सूरदास नरियर जो बिष को करहिं बंदना कीन्ह॥३५॥


राग विहागरो
बरु वै कुब्जा भलो कियो।

सुनि सुनि समाचार ऊधो मो कछुक सिरात हियो॥
जाको गुन, गति, नाम, रूप हरि, हार्‌यो फिरि न दियो।


  1. अंतरगति=चित्त की वृत्ति, मन।
  2. बूची=कनकटी, जिसका कान कटा हो।
  3. खुभी=कान में पहनने का एक गहना, लौंग।
  4. बेसरि=नाक में पहनने का एक गहना।
  5. मतो करै=सलाह करे।