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भ्रमरगीत-सार
२०
 


अँखिया हरि-दरसन की भूखी।

कैसे रहैं रूपरसराची ये बतियाँ सुनि रूखी॥
अवधि गनत इकटक मग जोवत तब एती नहिं झूखी[१]
अब इन जोग-सँदेसन ऊधो अति अकुलानी दूखी॥
बारक[२] वह मुख फेरि दिखाओ दुहि पय पिवत पतूखी[३]
सूर सिकत हठि नाव चलाओ ये सरिता हैं सूखी[४]॥४२॥


राग सारंग
जाय कहौ बूझी कुसलात।

जाके ज्ञान न होय सो मानै कही तिहारी बात॥
कारो नाम, रूप पुनि कारो, कारे अंग सखा सब गात।
जौ पै भले होत कहुँ कारे तौ कत बदलि सुता लै जात[५]
हमको जोग, भोग कुबजा को काके हिये समात?
सूरदास सेए सो पति कै पाले जिन्ह तेही पछितात॥४३॥


कहाँ लौं कीजै बहुत बड़ाई।

अतिहि अगाध अपार अगोचर मनसा तहाँ न जाई॥
जल बिनु तरँग, भीति बिनु चित्रन, बिन चित ही चतुराई।
अब ब्रज में अनरीति कछू यह ऊधो आनि चलाई॥
रूप न रेख, बदन, बपु जाके संग न सखा सहाई।
ता निर्गुन सों प्रीति निरंतर क्यों निबहै, री माई?
मन चुभि रही माधुरी मूरति रोम रोम अरुझाई।
हौं बलि गई सूर प्रभु ताके जाके स्याम सदा सुखदाई॥४४॥


  1. झूखी=सन्तप्त हुई।
  2. बारक=एक बार।
  3. पतूखी=पत्ते का दोना।
  4. सूर...सूखी=व्यर्थ बालू में नाव चलाते हो, ये सूखी नदियाँ हैं।
  5. तौ कत......लै जात=तो क्यों लड़के (कृष्ण) को बदलकर लड़की ले जाते?