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भ्रमरगीत-सार
३२
कहिबे जीय न कछु सक राखो।
अब नीके कै समुझि परी।
जिन लगि हुती बहुत उर आसा सोऊ बात निबरी[८]॥
वै सुफलकसुत, ये, सखि! ऊधो मिली एक परिपाटी।
उन तो वह कीन्ही तब हमसों, ये रतन छँड़ाइ गहावत माटी॥
- ↑ त्रिकुटी=दोनों भौंहों के बीच का स्थान, त्रिकूटचक्र।
- ↑ तराटक=त्राटक। योग के छः कर्मों में से एक। अनिमेष रूप से
किसी बिंदु पर दृष्टि गड़ाने का अभ्यास। - ↑ मनजात=कामदेव।
- ↑ लावा मेल देना=जादू वा टोटका करके पागल बना देना।
- ↑ आखों=सारा (सं॰ अक्षय)।
- ↑ काँधी=अंगीकार की, मानी।
- ↑ दई को खोयो=गया बीता (स्त्रियों की गाली)।
- ↑ निबरी=छूटी, खतम हुई, जाती रही।