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भ्रमरगीत-सार
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ऊधो! तुम अपनो जतन करौ।
हित की कहत कुहित की लागै, किन बेकाज ररौ?
जाय करौ उपचार आपनो, हम जो कहत हैं जी की।
कछू कहत कछुवै कहि डारत, धुन देखियत नहिं नीकी।
साधु होय तेहि उत्तर दीजै तुमसों मानी हारि।
याही तें तुम्हैं नँदनंदनजू यहाँ पठाए टारि॥
मथुरा बेगि गहौ इन पाँयन, उपज्यौ है तन रोग।
सूर सुबैद बेगि किन ढूँढ़ौ भए अर्द्धजल[१] जोग॥१०५॥
ऊधो! जाके माथे भोग।
कुबजा को पटरानी कीन्हों, हमहिं देत वैराग॥
तलफत फिरत सकल ब्रजबनिता चेरी चपरि[२] [३]*सोहाग।
बन्यो बनायो संग सखी री! वै रे! हंस वै काग॥
लौंडी के घर डौंड़ी बाजी स्याम राग अनुराग।
हाँसी, कमलनयन-संग खेलति बारहमासी फाग॥
जोग की बेलि लगावन आए काटि प्रेम को बाग।
सूरदास प्रभु ऊख छाँड़ि कै चतुर चिचोरत आग[४]॥१०६॥