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भ्रमरगीत-सार
 


राग मलार

जाहि री सखी! सीख सुनि मेरी।
जहाँ बसत जदुनाथ जगतमनि बारक तहाँ आउ दै फेरी॥
तू कोकिला कुलीन कुसलमति, जानति बिथा बिरहिनी केरी।
उपवन बैठि बोलि मृदुबानी, बचन बिसाहि[१] मोहिं करु चेरी॥
प्रानन के पलटे[२] पाइय जस सेंति बिसाहु[३] सुजस ढेरी।
नाहिंन कोउ और उपकारी सब बिधि बसुधा हेरी॥
करियो प्रगट पुकार द्वार है अबलन्ह आनि अनँग अरि घेरी।
ब्रज लै आउ सूर के प्रभु को गावहिं कोकिल! कीरति तेरी॥२९२॥


कोउ माई बरजै या चंदहि।
करत है कोप बहुत हम्ह ऊपर, कुमुदिनि करत अनंदहि॥
कहाँ कुहू, कहँ रवि अरु तमचुर, कहाँ बलाहक[४] कारे[५]?
चलत न चपल, रहत रथ थकि करि, बिरहिनि के तन जारे॥
निंदति सैल, उदधि, पन्नग को, सापति कमठ कठोरहिं[६]
देति असीस जरा[७] देवी को, राहु केतु किन जोरहि?


  1. बचन बिसाहि=वचनों से अर्थात् केवल वहाँ बोलकर मुझे मोल ले।
  2. प्रानन के पलटे=यश प्राण देने पर मिलता है, जल्दी नहीं मिलता (पर तुझे केवल बोलने से ही मिलेगा)।
  3. बिसाहु=मोल ले।
  4. बलाहक=बादल।
  5. कहाँ कुहू........कारे=इन सबके आने से चंद्रमा या तो छिप जाता है या मन्द हो जाता है।
  6. निंदति..........कठोरहिं=इनकी निंदा करती है, क्यों कि उस समुद्र मंथन में ये सब सहायक हुए थे जिसमें चंद्रमा निकला था।
  7. जरा=एक राक्षसी, जिसने जरासंध के शरीर के दो खंड जोड़े थे।