पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

(५)


का सा व्यवहार (केवल जोड़ती रही) [१०९] बहावै=त्याग दे। [११०] हित=अच्छा, रुचिकर। माहे=में। दाहै=जलन से। [१११] अब किन॰=बेचकर दाम क्यों नहीं खड़े कर लेते। सबरी=सब। [११२] रूख=वृक्ष। [११३] गुनैबो=गुणयुक्त बनाने से। अनखात=बुरा मानती हैं। तन=ओर। बिहात=बीतता है। [११४] स्याम=श्रीकृष्ण और काला। बिरद किए=यश गाया। स्रुति=वेद। बारिज-बदन॰= मेरे नेत्ररूपी भ्रमर श्रीकृष्ण के कमलमुख का मधुपान कब करेंगे, उनके दर्शन कब होंगे? [११५] कूजत=बोलती है। सिंगी=सींग का बाजा। पखान=(पाषाण) शिला, पत्थर। [११६] काढ्यो=खींचा, बनाया। [११७] ऊजर=उजड़े हुए। [११८] अनुसारी=छेड़ी। अहि॰=जैसे सांप केंचली छोड़ देता है वैसे मन शरीर को छोड़कर चला गया। [११९] बोहित=जहाज, बड़ी नाव। [१२०] तुम्हरे॰=तुम्हें ही फबती है। नरियर-ज्यों=देखिए पद ३५ की टिप्पणी। [१२१] परेवा=कबूतर। कंटक॰=स्वयं कांटे की चोट सहता है। निरुवारै=निवारण करते हो, हटाते हो। [१२२] अपाने=अपने। निदाने=अंत में। [१२४] दुसह धुनि=असह्य ध्वनि (कानों को)। [१२५] बिसाहु=मोल ले लें। [१२६] आनि॰=आकर आशा को भी निराशा में परिणत कर दिया। [१२७] ओछो तोल=तौल में कम, हलका। जाति=संप्रदाय, मंडली। [१२८] त्रिदोष=संनिपात। जक=बकवाद। थिरकै=स्थायी रूप से। [१२९] पवन धरि=प्राणायाम करके। [१३१] बरन=वर्ण, रंग। [१३२] आँधरी॰=अंधी यदि अंजन लगाए। [१३३] पय॰=बैल से दूध दुहते हो। [१३४] मोट=गठरी। कर करि=हाथ से। मृगमद=कस्तूरी। मलयज=चंदन। उबटति=मलती थी। तृप्ताति=तृप्त होंगी। [१३५] खरि=खड़िया। [१३७] गुपुत=भेद, रहस्य। [१३८] पुहुमि=पृथ्वी। भरमात=घूमता है। अघात=तृप्त होती है। अमृत फल=मीठे फल। [१३९] खरियै=अत्यंत। सुधि॰=उसे भूलने की वृत्ति ही भूल गई अर्थात् वह भूलता नहीं। आँक=अंक,