हटा दी गईं। पाँच पद दो दो बार छप गए थे। ये पुनरुक्त पद भी कम कर दिए गए। ग्रन्थ में पहले कुल पद-संख्या ४०३ थी। उक्त परिशुद्धि से ११ संख्याएँ कम हो गईं और अब कुल पद-संख्या ३९२ ही रह गई। ८-९ पद नए जोड़ कर ४०० या ४०१ पद-संख्या कर देने का विचार था, पर कई कारणों से ऐसा नहीं किया।
भ्रमरगीत के कुछ पदों का आवश्यक अंश शुक्लजी ने अपनी भूमिका में भी उद्धृत किया है। मिलाने पर भूमिका और मूल के पदों में कहीं थोड़ा और कहीं विशेष पाठभेद दिखाई पड़ा। अधिकतर भूमिका के पाठ को ठीक मानकर जहाँ तक बन सका दोनों की एकरूपता स्थापित की गई। पदों में जो छापे की अशुद्धियाँ रह गई थीं उन्हें भी शुद्ध कर दिया गया। ब्रज में तालव्य 'श' नहीं होता इसलिए, सर्वत्र दंत्य 'स' का ही व्यवहार किया गया है। पहले इस नियम का पालन कहीं था कहीं नहीं।
पदों की दो-चार टिप्पणियों में मतभेद दिखाई पड़ा। इनमें कोई परिवर्तन न करके संपादक की मूल टिप्पणियों के नीचे दूसरे अक्षरों में नई टिप्पणियाँ अलग से लगा दी गई हैं। शुक्लजी की टिप्पणियों के अतिरिक्त बहुत से ऐसे शब्द और प्रयोग और दिखाई पड़े जिनकी व्याख्या आवश्यक प्रतीत हुई। इसलिए 'चूर्णिका' नाम से पुस्तक के अंत में कुछ और टिप्पणियाँ भी जोड़ देनी पड़ीं। अब आशा की जा सकती है कि यह पढ़ने-पढ़ानेवालों के लिए सुगम हो गया होगा।
ब्रह्मनाल, काशी रथयात्रा, १९९९ |
विश्वनाथ प्रसाद मिश्र |