काम-जादूगर की भी यही दशा है। मतिरामजी ने इंद्रजाल के खेल देखे थे, इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है।
(७) मछली का शिकार करनेवाले जलाशय के किनारे बैठकर बंसी (काँटा) के द्वारा जिस प्रकार शिकार करते हैं, वह मतिराम ने अवश्य देखा होगा। वारविलासिनी मछली (विशेष शुद्ध वारि- विलासिनी ) का विशेषण हो सकता है, और वह वेश्या का भी नाम है। लोचन जलाशय है, जहाँ कुटिल अलक-रूप बंसी बार-बार गिरती है।
"लोचन-पानिप ढिंग सजी लट-बंसी परबीन;
मो मन बारबिलासिनी फाँसि लियो मनु मीन।"
(८) जो चोरी करता है, उसकी निंदा होती है। मालूम होने पर चोरी का माल वापस न देने से और भी निंदा होती है। ऊपर कहे हुए अभीष्ट-साधन के लिये किसी को घायल करना—चोट पहुँचाना—नीचता का काम है। खुल्लमखुल्ला लड़कर किसी का माल उठा लेना डाका डालना है। ये सब बातें नीति-विरुद्ध हैं। इनका करने- वाला समाज में बदनाम होता है। उसकी बड़ाई कोई भी नहीं करता। सभी उसकी निंदा करते हैं। नीतिज्ञ मतिरामजी इन सब बातों को जानते हुए जब किसी के 'नेत्रों' को इसी प्रकार का उपद्रव करते हुए पाते हैं, तब उन्हें हार्दिक खेद होता है। पर जब वह ऐसे नीच नेत्रों की समाज में 'बड़ाई' सुनते हैं, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रह जाता। ऐसी अनीति का ऐसा सुंदर पुरस्कार देख-कर किसका धीरज न छूट जायगा। ऐसे कामों के करने वाले को 'बड़ाई' मिलना क्या 'बड़ी बात' नहीं है? देखिए, मतिरामजी क्या कहते हैं—
"देखत ही सबके चुरावती हैं चित्तनि को,
फेरिकै न देती, यौँ अनीति उमड़ाई हैं;