अवस्थावाले युवकों में कुचि का संचार होता हो, तो आश्चर्य नहीं। पर, तो भी, कविता-सौंदर्य इनमें अवश्य है। एक बात और है। हिंदी कविता में परकीया और गणिका नायिकाओं का वर्णन बुरा प्रभाव उत्पन्न करनेवाला होने पर भी इतना गया-बीता नहीं है, जितना बायरन आदि कई अँगरेज़-कवियों के अश्लील वर्णन। बायरन के ऐसे ही घृणित काव्य को लक्ष्य करके समालोचक न्यूमैन कहते हैं—
"इसके विपरीत कभी-कभी ऐसा काव्य भी मिलता है, जिसके सौंदर्य के विषय में तो इनकार नहीं किया जा सकता; परंतु वह सौंदर्य जिस अयोग्य वस्तु में समाविष्ट होता है, उसे देख क्रोध उत्पन्न होता है।"
अस्तु, समालोचक महोदय रुष्ट होकर भी कवि बायरन के महा- घृणित काव्य में सौंदर्य का अभाव कहने का साहस नहीं कर सके हैं। इसी प्रकार कवि रोचेस्टर की कविता में अश्लील वर्णन पाए जाते हैं, पर हैज़लिट-जैसे समालोचक ने उसके काव्य-सौंदर्य से इनकार नहीं किया है। कहने का तात्पर्य इतना ही है कि ऐसे वर्णनों में जो काव्य-सौंदर्य है, वह सराहनीय ही है, फिर उसका प्रभाव चाहे जैसा हो। मतिराम कवि के काव्य में भी परकीया और गणिका के अनेक वर्णनों में खासा सौंदर्य समाविष्ट है। पाठकों से प्रार्थना है कि वे मतिराम के ऐसे वर्णनों को पढ़ते समय उन्हें नैतिक उपदेशक की दृष्टि से न देखें, वरन् एक ऐसे कवि की दृष्टि से देखें, जिसका काम सभी स्थलों से सौंदर्य संकलन करना है।
(१)
नायिका गुप्त रीति से अपने प्रियतम से मिल आई है। प्रियतम ने उसका शृंगार किया है । प्रियतम कृत शृंगार साधारणतः सखी- कृत श्रृंगार के समान नहीं है। कई कारणों से उसके किए हुए श्रृंगार में कुछ विशेषता है।
सखी की बारीक निगाह इस विशेषता को समझ लेती है ।