पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/१३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१३०
मतिराम-ग्रंथावली

N १३० मतिराम-ग्रंथावली Companion andeynistpriviopiandaailemonymiamine भाव की संपूर्णता के लिये यह आवश्यक था कि ग्राह के द्वारा गज- ग्रास की बात स्पष्ट-स्पष्ट वर्णित कर दी जाती । सारांश-शब्द-योजना-संबंधी दो-एक खटकने योग्य बातें होते हुए भी उपर्युक्त छंद सत्काव्य का एक अच्छा उदाहरण है। इसमें 'दया-वीर'-रस का संपूर्ण निर्वाह हुआ है। चचलातिशयोक्ति-अलंकार का प्रकाश भी बड़ा ही सुंदर है। भगवान् और हाथी के पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग बड़ी चतुरता के साथ किया गया है। तुलनात्मक दृष्टि से देखने पर छंद की प्रभा और चमत्कार-पूर्ण दिखलाई पड़ती है। इससे यह भी पता चलता है कि मतिरामजी शृंगारातिरिक्त अन्य रसों की कविता भी कुशलता-पूर्वक कर सकते थे। प्रयोजन यह कि छंद सब प्रकार से सराहनीय बन पड़ा है। (२) "प्रानपियारो मिलो सपने मैं, परी जब नेसुक नींद-निहोरे;

  • नाह को आइबो, त्यों ही जगाय, सखी कह्यो बैन पियूषी-निचोरे।

यों 'मतिराम' बढ्यो हिय मैं सुख बाल के बालम सों दृग जोरे;

  • जैसे मिही-पट मैं चटकीलो चढे रँग तीसरी बार के बोरे।"

- पिंगल-सात भगण और अंत में दो गुरु होने के कारण यह मालती-नामक सवैया-छंद है । मात्रा-गणना में कहीं-कहीं गुरु का लघु और लघु का गुरु पढ़ना पड़ा है, जो एक प्रकार का दोष है, परंतु इस दोष को बहुत-से कवियों ने नहीं माना है। रस-आलंबन विभाव नायक एवं नायिका हैं । नायिका आगत- पतिका है, क्योंकि उसका पति परदेश से आया है । वह प्रौढ़ा भी है, क्योंकि बालम से दृग मिलाती है। बालम के वियोग से वह दुखित diminatamdanter mamalinusaramethapanasiurmiciansomnima Ar i anavinduismanav sridewiksammercom

  • कंत को आइबो इत्यादि-पाठांतर

+ज्यों पट मैं अति ही चटकीलो चढ़े रँग तीसरी बार के बोरे ।