पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/१८७

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समीक्षा १८३ कबि 'मतिराम' प्रानप्यारे को मिलन चली, करिकै मनोरथनि मृदु मुसकाति है; होति न लघाई निसि-चंद की उज्यारी, मुख- चंद की उज्यारी तन छाँही छपि जाति है।" (मतिराम) दोनो ही कवियों ने शुक्लाभिसारिका का अपूर्व अभिसार दिख- लाया है। नायिका विमल चाँदनी में अपने प्रियतम को मिलने जा रही है, इसलिये उसका संपूर्ण उद्योग यह है कि उसके वस्त्र, आभू- षण इत्यादि ऐसे हों, जो चाँदनी में छिप जायें। उज्ज्वल चाँदनी में सफ़ेद वस्तुओं के ही छिपने की संभावना है । इसलिये मतिरामजी ने अभिसारिका के अंगों में कर्पूर-मिश्रित श्वेत चंदन का लेप करा दिया है। यह लेप अभिसार के लिये उपयोगी है, और साथ ही उद्दीपक भी। कर्पूर की उग्र गंधि पद्मिनी के शरीर की स्वाभाविक पद्मगंधि को भी दबा देती है । इससे भ्रमर-मंडली नायिका का पीछा नहीं करती है, सो कर्पूर-मिश्रित चंदन का लेप अभिसार-कार्य प्रकट न होने देने में भी सहायता पहुँचाता है। मोतियों के गहने और केश-पाश में कुसुम-कलियाँ सजाकर मतिरामजी उसे दुग्ध-फेन के सदृश उज्ज्वल सफ़ेद साड़ी भी उढ़ा देते हैं। सब उपाय हो जाने पर भी चाँदनी में शरीर की छाया के छिपाने का कोई प्रबंध न था, पर कवि ने उसे भी दूर ही कर दिया । यदि और सब सामग्री 'निसि-चंद की उज्यारी में छिप गई थी, तो 'छाँह' मुख-चंद की उजियाली में न ठहर सकी। आखिर मुख-चंद की चाँदनी का भी तो कुछ उपयोग होना चाहिए था। दासजी ने भी 'आनन-प्रभा' में छाँह को छिपाया है, पर हमारी राय में कोरी आनन-प्रभा से 'मुख-चंद की उज्यारी' में विशेष चमत्कार है। मतिराम के भाव में दासजी कोई अनूठापन नहीं ला सके, या यों कहें कि उन तक पहुँच ही नहीं सके । किसुक के