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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२०

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मतिराम-ग्रंथावली

 

राधा-कृष्ण का प्रेम

व्रज-भाषा की श्रृंगार रस की कविता में अधिकतर राधा-कृष्ण की प्रेम-लीलाओं का वर्णन है। उसी बात को बार-बार आगे होने-वाले कवि दोहराते गए हैं। उनके वर्णन के विषय इने-गिने हैं। उनकी कविता की क्रीड़ा-स्थली नितांत संकुचित है। बात यह है कि कविता में घटना-विशेष का ही वर्णन किया जाता है। इस घटना का संबंध मनुष्य जाति से होना चाहिए। इतना ही पर्याप्त नहीं है। कोई घटना कविता में निभ सकेगी, इसके लिये उसमें उत्तमता की मात्रा इतनी अधिक होनी चाहिए कि वह रमणीयता उत्पन्न कराने में सहायक हो। सभी घटनाएँ कविता के उपयुक्त नहीं हो सकतीं। कृष्णचंद्र वृंदावन से मथुरा चले गए हैं। उनके विरह में वृंदावन की गोपियाँ विकल हो रही हैं। कृष्णचंद्र के भेजे उद्धवजी वृंदावन में आकर गोपियों को योग धारण का उपदेश देते हैं। गोपी-उद्धव-संवाद की अमर घटना घटती है। क्या इस संसार में विरह-विधुरा नारी को और किसी ने उपदेश नहीं दिया है? एक ने नहीं, लाखों ने ऐसा किया है, पर गोपी-उद्धव-संवाद की बात ही निराली है। इस प्रकार की और अन्य घटनाएँ इस घटना का सामना नहीं कर सकतीं। गोपी-उद्धव-संवाद कभी पुराना नहीं हो सकता। अन्य ऐसी घटनाएँ उसके स्थायित्व को पा नहीं सकतीं। कहने का तात्पर्य यह कि कविता को सुसज्जित करनेवाली विशिष्ट घटनाएँ संसार में थोड़ी ही मिलती हैं। यदि ध्यान देकर देखा जाय, तो मालूम पड़ेगा कि व्रज भाष के कवियों ने जिन विशेष घटनाओं को बार-बार दोहराया है, उनमें रमणीयता उत्पन्न करानेवाली सामग्री अत्यधिक भरी हुई है। ऐसी