सब अब भावसिंह में ही आकर ठहरी थी। भावसिंह दान की दृष्टि से कल्पद्रुम के समान थे। वह समर से हटते न थे। उनमें ज्योति थी, तेज और प्रभाव था। अपने प्रण-प्रतिपालन में वह सच्चे थे, उनका मन शुद्ध और सरल था! वह धन-धान्य से परिपूर्ण थे, और उनका प्रताप सार्वभौम था। राजाओं में भावसिंह की अच्छी शोभा थी। उनका वंश, मन, हृदय और ऐश्वर्य, सभी महान् थे। भावसिंह के समान भावसिंह ही थे। जैसे उनका मन उच्च था, वैसे ही दान देने में भी वह मुक्तहस्त थे। उनकी समता दिल्लीश्वर से ही की जा सकती थी। बड़ों की समता बड़ों से करना ही ठीक है। भावसिंह की दानशालीनता के आगे बड़ी-बड़ी मनोकामनाओं को पूरी करनेवालों का मस्तक झुक जाता था। इनके आश्रय में बड़े-बड़े लोगों को स्थान मिला था। इनके सैन्य दल के हाथी क्या थे, चलते-फिरते पहाड़ थे। उनको देखकर मेघ-माला का धोका होता था। यह अपने पूर्ण प्रताप से मध्याह्न-काल के सूर्य के समान तपते थे, पर ब्राह्मणों पर इनका अनुग्रह रहता था। इन्होंने बड़े-बड़े गज-दान दिए। अपनी-अपनी भावना के अनुसार लोग इनको भिन्न-भिन्न प्रकार से देखते थे। कुछ लोगों को इनके इंद्र महाराज होने का धोका होता था। भावसिंह या तो अपने हाथियों की सेना से शत्रु का पराभव करते थे या कविराजों को पुरस्कार में बड़े-बड़े गज-दान दे दिया करते थे। इनका यश बहुत दूर तक फैला था। यह भक्त भी बड़े अच्छे थे। इनके हाथी डीलडौल में बड़े ऊँचे थे। इन हाथियों को देखकर बड़े-बड़े मनसबदारों को लालच लगता था, पर कविराजों को ऐसे हाथी सहज ही में मिल जाते थे। अपनी इज़्ज़त बचाने के लिये बादशाह ने शिवाजी के मुकाबले में इन्हीं को भेजा था। यह दान देने में हिंदू-मुसलमान का भेद-भाव न रखते थे। कवि लोग इनका यश वर्णन करके अपने को धन्य मानते थे। हाड़ाओं के योग्य
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