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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२१५

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समीक्षा

वंशधर भावसिंह को समर में सदा विजय प्राप्त होती थी। इनकी समर-यात्रा का बड़ा आतंक था, पर इनका यशःसौरभ परम सुगंधमय था। शत्रु लोग स्वयं आ-आकर इनकी अधीनता स्वीकार कर लिया।करते थे। इनकी धार्मिक वृत्ति भी सराहनीय थी। अपने पवित्र चरित्र से यह राजर्षि-पद के अधिकारी थे। शत्रुशाल-पुत्र युवा, नवल भावसिंह का सुयश नित्य नया दिखलाई पड़ता था। इनके राज्य में अनुचित बातों का ही अभाव दिखलाई रड़ता था। इनके शत्रु या तो इनकी अधीनता स्वीकार करते या पराजित होते थे। इनके पास सभी प्रकार के हाथी थे। इन्होंने कभी किसी से दबना स्वीकार नहीं किया। इनके यहाँ रोशनी का बड़ा अच्छा प्रबंध था। इनके नाम के भावसिंह शब्द सार्थक थे। कविवर मतिराम ने 'ललितललाम' के अंत में बड़े ही प्रभावोत्पादक शब्दों में इन्हें आशीर्वाद दिया है।

मतिराम का वंश-परिचय

महाकवि मतिराम के वंश आदि के विषय में अब तक जो मत प्रचलित है, उसका सारांश यह है कि ये चार सगे भाई टिकमापुर, ज़िला कानपुर के रहनेवाले थे। चारो भाइयों के नाम भूषण, मतिराम, चिंतामणि तथा जटाशंकर हैं। इनके पिता का नाम रत्नाकरजी था, और ये चारों पुत्र श्रीदेवीजी के आशीर्वाद से हुए थे। भूषणजी ने देवीजी पर अपनी जिह्वा चढ़ाकर कवित्व-शक्ति प्राप्त की थी। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे, और इनका जन्म कश्यप-गोत्र में हुआ था, तथा ये 'त्रिपाठी'-उपाधि से विभूषित थे। कुल, गोत्र एवं पिता।के नाम आदि की पुष्टि शिवराजभूषण के निम्न-लिखित दोहे से होती है—

"दुज कनौज, कुल कस्यपी, रत्नाकर-सुत धीर;
बसत त्रिबिकमपुर सदा तरनि-तनूजा-तीर।"

इस दोहे में इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं है कि भूषण के