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मतिराम-ग्रंथावली
"जहाँ और को संक करि साँच छिपावत बात;
(शिवराजभूषण)
दीपक
"बन्र्य-अबन्र्यन को जहाँ धरम होत है एक;
(ललितललाम)
"बन्र्य-अबन्र्यन को धरम जॅंह बरनत हैं एक;
(शिवराजभूषण)
निदर्शना
"सदृश वाक्य जुग अर्थ को जहाँ एक आरोप;
(ललितललाम)
"सदृश बाक्य जुग अर्थ को करिए एक अरोप;
(शिवराजभूषण)
विस्तार-भय से और अधिक लक्षण उद्धृत न करके हम पाठकों से प्रार्थना करेंगे कि वे दोनो ग्रंथों में क्रम से समाधि, संभावना, अवज्ञा, तद्गुण, अतद्गुण, अनुगुण, स्वभावोक्ति और भाविक आदि अलंकारों के लक्षणों का मिलान करें, उन्हें तुक तक की समता मिलेगी। इतने से ही संतुष्ट न होकर आइए, दोनो कवियों की कविता पर भी किंचित् बारीक निगाह डाली जाय। देखिए—
(१) "अली चली नवलाहि लै पिय पै साजि सिंगार;
(मतिराम)