पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२२२

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२१८ मतिराम-ग्रंथावली । PanamaAM "जहाँ और को संक करि साँच छिपावत बात ; छेकापह्नति कहत हैं 'भूषन' कबि अवदात ।" (शिवराजभूषण) दीपक "बर्ना-अबर्मन को जहाँ धरम होत है एक; बरनत हैं दीपक तहाँ कबि करि बिमल बिबेक ।" (ललितललाम) "बर्य-अबधन को धरम जैह बरनत हैं एक; दीपक ताको कहत हैं 'भूषन' सुकबि बिबेक ।" (शिवराजभूषण) निदर्शना "सदृश वाक्य जुग अर्थ को जहाँ एक आरोप; बरनत तहाँ निदर्शना कबिजन मति अति ओप।" (ललितललाम) "सदृश बाक्य जुग अर्थ को करिए एक अरोप; 'भूषन' ताहि निदर्शना कहत बुद्धि दै ओप।" (शिवराजभूषण) विस्तार-भय से और अधिक लक्षण उद्धृत न करके हम पाठकों से प्रार्थना करेंगे कि वे दोनो ग्रंथों में क्रम से समाधि, संभावना, अवज्ञा, तद्गुण, अतद्गुण, अनुगुण, स्वभावोक्ति और भाविक आदि अलंकारों के लक्षणों का मिलान करें, उन्हें तुक तक की समता मिलेगी। इतने से ही संतुष्ट न होकर आइए, दोनो कवियों की कविता पर भी किंचित् बारीक निगाह डाली जाय । देखिए-- (१) "अली चली नवलाहि लै पिय पै साजि सिंगार; ज्यों मतंग अँडदार को लिए जात गडदार ।" (मतिराम)