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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२२३

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२१९
सभीक्षा

 

"दावदार निरखि रिसानो दीह दलराय,

जैसे गड़दार अँड़दार गजराज को।"

(भूषण)


(२) "आई फूलनि लैन को, चलौ बाग में लाल;

मृदु बोलनि सों जानिए, मृदु बेलिन मैं वाल।"

(मतिराम)


"सिव सरजा तुव सुजस मैं मिले धौल छबि तूल;

बोल-बास ते जानिए हंस, चमेली-फूल।"

(भूषण)


(३) "दान-हीन कलभ, कदलि-दल कंपजुत;

राव भावसिंहजी के राज मैं निहारिए।"

(मतिराम)


"कंप कदली मैं, बारि-बुंद बदली मैं, सिव-

राज अदली के राज मैं यों राजनीति है।"

(भूषण)


(४) "तन तरवारिन मैं, मन परमेसुर मैं,

प्रान स्वामिकारज मैं, माथो हर-माल मैं;"

(भूषण)


"सोस भयो हर-हार-सुमेरु, छता भयो आपु सुमेरु की बासी।"

(मतिराम)


(५) "तमक ते लाल-मुख सिवा को निरखि भए

स्याह-मुख नौरंग-सिपाह-मुख पियरे;"

(भूषण)


"मूछनि सों राव-मुख लाल-रंग देखि मुख

औरन को मूछनि बिना ही स्याम-रंग भो;"

(मतिराम)