पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२२९

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समीक्षा २२५ (६) साहित्य-सार यह १० पृष्ठ का एक छोटा-सा ग्रंथ है। इसमें नायिका भेद का वर्णन है। इसकी हस्त-लिखित प्रति दतिया-राज के पुस्तकालय में मौजूद है। यह प्रति सं० १८३७ की लिखी हुई है। ग्रंथ संभवतः १७४० में बना होगा। (७) लक्षणशृंगार यह १४ पृष्ठ का छोटा-सा ग्रंथ है । इसमें भावों और विभावों का वर्णन है । हस्त-लिखित प्रति संवत् १८२२ की लिखी हुई है, और विजावर-राज्य के पुस्तकालय में मौजूद है। इसकी रचना भी संभ- वत: १७४५ के लगभग हुई होगी। (८) अलंकार-पंचाशिका यह ग्रंथ संवत् १७४७ में कुमायूं के राजा उदोतचंद के पुत्र ज्ञानचंद के लिये मतिरामजी ने बनाया । इसके कुछ उदाहरण दिए जाते हैं- "गजपुर गिरिजा गिरिस रबि हरि पूँजौं हर बार; मन-बच राजकुमार कौं कीजो कृपा अपार । महाराज उद्योतचॅद भयो धरम को धाम; तपन धरनि पर एक सम चहूँ चक्र पर नाम । देस दाबि दिल्लीस को गए सुरसरी न्हान । लए बिकट गढ़ जीतिक दए षोड़सौ दान । तिनके राजकुमार घर ग्यानचंद कुलचंद ; कुबलय कोबिद कबिन कौं बरसै सुधा अमंद । यों कुमारता ही भयो जहाँ-तहाँ परगास; अरुन उदै ही होत ज्यों अंधकार को नास।