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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२३

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समीक्षा

अपने पूर्ववर्ती के भावों से लाभ उठा लिया करता है। जो लोग भाव को सुंदरता और कुशलता के साथ अपनाते हैं, उनकी, भाव पुराना होने पर भी, निंदा नहीं होती, पर जो लोग पूर्ववर्ती के भाव को लेकर उसे भद्दे ढंग से प्रकट करते हैं, और इस प्रकार उसकी रमणीयता नष्ट कर देते हैं, उनकी निंदा होती है। साहित्य-संसार में उनकी ख्याति चोर के नाम से होती है। यदि किसी में भाव अपनाने की योग्यता हो, तो वह अपने पूर्ववर्ती के भाव को अपनाकर भी यशस्वी होता है। एक विद्वान् समालोचक की राय है कि अपने से पहले हो चुकनेवाले कवियों के भावों से कुछ भी वास्ता न रखने की प्रतिज्ञा करके जो कवि लिखने बैठेगा, उसकी रचना में कविता का नहीं, वरन् विचित्रता का प्राधान्य पाया जायगा। संसार का कोई भी कवि संपूर्ण मौलिकता का अभिमान नहीं कर सकता है।

समालोचना

कविता की उत्कृष्टता या हीनता का निर्णय उसकी समालोचना से हो सकता है। समालोचना से यह अभिप्राय है कि कवितागत गुण-दोषों पर विचार किया जाय। गुण-दोष क्या हैं? इसका पता काव्य-शास्त्र के ग्रंथों के अध्ययन से मालूम हो सकता है। काव्य-शास्त्र में कविता की उत्तमता या हीनता की जो कसौटी दी हुई है, उसमें रस, अलंकार, भाषा, गुण, दोष, लक्षणा, व्यंजना आदि पर विचार करना पड़ता है। ब्रज-भाषा में इन विषयों पर अच्छी तरह विवेचन हुआ है। इस विषय के अनेकानेक ग्रंथ मौजूद हैं। अँगरेज़ी ढंग की समालोचना में जो बातें कही जाती हैं, वे भी प्रायः यही हैं। कुछ थोड़ा-सा भेद है। इसके अतिरिक्त कवियों के समान भाववाली कविताओं की तुलना से भी समालोचना को बड़ी सहायता मिलती है। समालोचना से सत्साहित्य को प्रोत्साहन मिलता