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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२३३

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समीक्षा


में भी मौजूद है। इसलिये ‘वृत्त-कौमुदी’ ही छंद-सार-पिंगल है।

‘वृत्त-कौमुदी’ रसराज के रचयिता की ही बनाई है या नहीं, इस बात की भली भाँति से छानबीन करने के लिये हमने संपूर्ण ‘वृत्त- कौमुदी’ ग्रंथ देखने का विचार किया, और इसलिये पं० भागीरथ- प्रसादजी से उसे मँगा देने की प्रार्थना की तथा जहाँ उन्होंने ग्रंथ के होने का पता दिया था, वहाँ पत्र लिखे, और दो आदमी भी भेजे, पर हमको ग्रंथ न मिला। इतना ही नहीं, हमारे भेजे आदमियों ने तो हमें यह उत्तर दिया कि जिन महाशय के यहाँ उक्त ग्रंथ बतलाया जाता है, उनका कहना है कि हमारे यहाँ ग्रंथ नहीं है। दीक्षितजी का भी कहना है, अब हमें ग्रंथ नहीं मिल रहा है। ऐसी दशा में ‘वृत्त-कौमुदी’ का जितना अंश ‘माधुरी’ तथा ‘नागरी-प्रचारिणी पत्रिका’ में छपा है, हमें उतने पर ही संतोष करना पड़ता है। हमने इस अंश को ध्यान से पढ़ा, तो हमें इसके रचयिता रसराज और ललित ललाम के कर्ता से भिन्न जान पड़े। रसराज के रचयिता की कविता में प्रसाद-गुण की प्रचुरता है, तथा उन्होंने उसी बात को बार-बार दोहराया नहीं, पर ‘वृत्त-कौमुदी’ में क्लिष्टता है, और पिष्टपेषण भी। रसराज के कर्ता का जो पिंगल प्रसिद्ध है, उसका नाम ‘छंद-सार’ है, पर इसका नाम ‘छंद-सार-संग्रह’ या ‘वृत्त-कौमुदी’ है। ‘शिवसिंहसरोज’ में जो दो छंद उद्धृत हैं, उनमें से एक ‘वृत्त-कौमुदी’ में भी हो, तो इससे दोनो ग्रंथ एक न हो जायँगे। शिवसिंहजी ने बहुत-सी बातें सुनी-सुनाई भी लिखी हैं। संभव है, इन दो छंदों को भी उन्होंने सुनकर ही लिखा हो। क्या दीक्षितजी को वह दूसरा छंद भी ‘वृत्त-कौमुदी’ में मिला है, जिसको शिवसिंहजी ने ‘छंद-सार’ से उद्धृत किया है? वह दूसरा छंद तो सेनापति का है, और ‘कवित्त-रत्नाकर’ में मौजूद है। इससे स्पष्ट है कि शिवसिंहजी ने सुनी हुई बात ही लिखी है। फिर ‘वृत्त-कौमुदी’ के रचयिता ने यह स्पष्ट