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मतिराम-ग्रंथावली


निर्देश किया है कि मैं 'दंडक-पद्धति' बना रहा हूँ; पर पंडित भागीरथ प्रसादजी का कहना है कि 'वृत्त-कौमुदी' में दंडक दो ही चार हैं। यह क्यों ? ललित ललाम, रसराज तथा मतिराम-सतसई, इन तीनो ही ग्रंथों में बहुत-से समान छंद पाए जाते हैं, पर 'वृत्त-कौमुदी' में ऐसे छंद नहीं हैं। ऐसा क्यों ? 'ललित ललाम' में कोरा शृंगार नहीं है। फिर भी उसमें अनेक वैसे छंद हैं, जो सतसई और रसराज में भी हैं। पं० भागीरथप्रसादजी दीक्षित 'फूल-मंजरी', 'रसराज' और 'वृत्त-कौमुदी' का रचयिता एक ही व्यक्ति को मानते हैं । 'फूल-मंजरी' जहाँगीर के समय में लिखी गई, और 'वृत्त-कौमुदी' औरंगजेब के मृत्यु-काल के निकट । सो इस हिसाब से जब मतिराम की अवस्था सौ बरस के लगभग हुई, तब उन्होंने 'वृत्त-कौमुदी'-जैसे पिंगल की रचना प्रारंभ की। ऐसा होना बहुत कम संभवनीय है। कवि लोग पिंगल-जैसे विषय के ग्रंथ अपने जीवन की प्रारंभिक अवस्था में लिखते हैं, मरण-काल के समीप नहीं। रसराज के रचयिता के वंशज बिहारीलाल एक प्रतिष्ठित कवि थे। इन बिहारीलाल के वंशज और संबंधी आज भी टिकमापुर, जिला कानपुर में मौजूद हैं। बिहारीलाल- जी तथा शीतल और रामदीनजी बड़े-बड़े रजवाड़ों में रसराज के रचयिता मतिराम के वंशज माने जाकर ही सम्मानित होते थे। कविवर 'नवीन' ने भी बिहारीलाल को मतिराम कवि का वंशज माना है। स्वयं बिहारीलालजी ने रस-चंद्रिका ग्रंथ में जो अपना वंश-परिचय दिया है, उसमें अपने को 'मतिराम' का पंती स्वीकार किया है। पं० भागीरथप्रसादजी ने इस ग्रंथ को भी देखा है। इस ग्रंथ में मतिराम के पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र तक का नाम दिया हुआ है, और उनके कान्यकुब्ज कश्यपगोत्री त्रिपाठी होने की बात लिखी है। दीक्षितजी को कुल, वंश और गोत्र शब्दों के प्रयोग पर कुछ आपत्ति है; पर यदि वह कृपा करके एक बार गोत्र और कुल शब्दों REESATiheANNARMANENitansis