- aninehema Mohinisilasida leoneritamination comparameer Meendee L २३४ मतिराम-ग्रंथावली (ग) ललित ललाम बूंदी-नरेश भावसिंह के समय में बना था। भावसिंह के बाद भी राव बुद्धसिंह के समय तक बूंदी से मतिराम का संबंध रहा है। फिर भी मतिराम ने रसराज बूंदी-नरेश के नाम से नहीं बनाया। सो जान पड़ता है, यह ग्रंथ मतिराम के बूंदी से संबंध टूटने के बाद बना। हम इन कारणों पर क्रमशः विचार करते हैं- (क) कवि का प्रथम ग्रंथ प्रायः उतना अच्छा नहीं बनता, यह बात ठीक है; परंतु ऐसे उदाहरण भी दिए जा सकते हैं, जिनमें कवि की प्रथम रचना को उसकी बाद की रचनाएँ नहीं पा सकी हैं। अवस्था, रुचि और विषय का प्रभाव कवि पर बहुत अधिक पड़ता है । तुलसीदासजी का रामचरित-मानस उनके और कई ग्रंथों के पहले बना था; पर उन सबसे 'मानस' की कविता चौगुनी-पचगुनी अच्छी है। मानस में ही 'बाल' और 'अयोध्याकांड' में जैसी उत्कृष्ट कविता है, वैसी बाद के कांडों में नहीं। रसराज का भी पूर्व भाग उत्तर भाग से प्रौढ़ है। ऐसी दशा में अकेले कविता-प्रौढ़ता के विचार से यह निश्चय नहीं किया जा सकता कि 'रसराज' बाद की रचना है। (ख) जैसे यह कहा जा सकता है कि 'ललित ललाम' से उठा- कर मतिरामजी ने रसराज में छंद रख दिए, वैसे ही यह भी कहा जा सकता है कि रसराज के छंदों को 'ललित लालम' में रख दिया। जब दोनो ग्रंथों में वे ही छंद पाए जाते हैं, तो एक से दूसरे में वे अवश्य रखे गए हैं। रसराज में भाव-भेद और ललित ललाम में अलंकारों के लक्षण दिए हैं। इन्हीं के उदाहरणों में जो शृंगार-रस के बहुत-से शब्द हैं, उनमें से कुछ रसराज और ललित ललाम में समान रूप से पाए जाते हैं। देखना यह चाहिए कि रसराज के जिस लक्षण के उदा- हरणवाला छंद ललित ललाम के किसी लक्षण के उदाहरण में आया oom BIRHANDARALHindi Investmidisaweis THIS andrenion 6468 YASYement
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