समीक्षा रसराज-ग्रंथ पर और भी कई टीकाएँ लिखी गई हैं। काव्य-शास्त्र के पढ़नेवाले इस ग्रंथ को अवश्य पढ़ते हैं। प्रायः सभी संग्रह-ग्रंथों में इस ग्रंथ के तथा ललित ललाम के छंद उद्धत किए गए हैं। कवि- राजा मुरारिदान ने अपने जसवंत-जसोभूषण में इन दोनो ग्रंथों के बहुत-से छंद उद्धृत किए हैं । इनके भाव अपनाने को बड़े-बड़े कवियों ने हाथ फैलाए हैं। इसके बहुत-से उदाहरण तुलनात्मक समालोचना- वाले अध्याय में मिलेंगे। रसराज के छंदों में आनेवाले भावों को लेकर चित्र भी बनाए गए हैं । ऐसे सचित्र रसराज का एक अंश काशी के सुप्रसिद्ध रईस और साहित्य-सेवी रायकृष्णदासजी के पास सुर- क्षित है। ___ललित ललाम पहले बना या रसराज ? . रसराज और ललित ललाम में किस ग्रंथ की कविता अधिक उत्तम है, इस विषय में मतभेद की कम संभावना है। प्रायः सभी विद्वानों की यही राय है कि रसराज की कविता विशेष हृदयग्राहिणी और मार्मिकतामयी है। रसराज किसी राजा या महाराजा के नाम पर नहीं बनाया गया है। रसराज और ललित ललाम में किस ग्रंथ की रचना पहले हुई, इस विषय में मतभेद हो सकता है । कुछ विद्वानरें की राय है कि रसराज की रचना ललित ललाम के बाद हुई है । इसके कारण ये बतलाए जाते हैं- (क) रसराज की कविता ललित ललाम की कविता से श्रेष्ठ है। कवि का प्रथम ग्रंथ प्रायः उतना अच्छा नहीं बनता, जितनी बाद की रचनाएँ । इस कारण स्पष्ट है कि रसराज बाद को बना। (ख) रसराज और ललित ललाम में कुछ शृंगार-रस के ऐसे छंद हैं, जो दोनो ग्रंथों में समान रूप से पाए जाते हैं। जान पड़ता है, 'ललित ललाम' के अच्छे-अच्छे छंद चुनकर मतिराम ने बाद को रसराज में भी उद्धृत कर दिए हैं।
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