पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२४१

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समीक्षा

y समीक्षा २३७ दरप न रह्यो, ताते दरपन कहियत, मुकुर परत, ताते मुकुर कहायो है।" (ललित ललाम) यह छंद था छलापह्न ति के उदाहरण का- __ "रातो-दिन फेरै अमरालय के आस-पास, मुख मैं कलंक-मिसि कारिख लगायक ।" या संदेह के उदाहरण का- “सीरे करिबे को पिय-नैन घनसार कंधों, __बाल के बदन बिलसत मृदु हास है।" या इसी प्रकार के कई और छंद रसराज में सहज ही स्थान पा सकते थे। मतिराम का रसराज में रूपगर्वितावाला छंद ऊपर दिए ललितललाम वाले छंद से बहुत घटकर है। यदि यह छंद रस- राज के बनते समय पहले से ही प्रस्तुत होता, तो उसमें अवश्य स्थान पाता। सारांश यह कि हमारी राय में ललित ललाम से लेकर रस- राज में छंद नहीं रक्खे गए। इसके विपरीत रसराज के अच्छे छंदों ने ललित ललाम में स्थान पाया है। जिन अलंकारों के उदाहरण में कई छंद दिए हैं, जिनमें का एक भावसिंह से संबंध रखनेवाला है, तो वह प्रायः पहले दिया है । बाद को शृंगारवाले छंद दिए गए हैं। इससे भी यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ललित ललाम के लिये खास जिस छंद की रचना हुई थी, उसको पहले देकर कवि ने अपने अन्य ग्रंथ के छंद भी उठाकर ललित ललाम में रख दिए। (ग) किसी बूंदी-नरेश के नाम पर न बनने के कारण जैसे यह नतीजा निकाला जाता है कि 'रसराज' बूंदी से मतिराम के संबंध-भंग होने के बाद बना, उसी प्रकार यह नतीजा निकलने में भी कोई आपत्ति नहीं कि बंदी से संबंध स्थापित होने के पहले ही रसराज की रचना हुई थी, और इस बात का क्या प्रमाण है कि -- - -- - - --- - -- - -