२३८ मतिराम-ग्रंथावली mala NHMARAKSHANILIANISHKAHANERGANINi BAR maitrinaamanane- n n amsinilio diane बुद्धसिंह के समय मतिराम का बूंदी से संबंध था ? (क) और (ख) के संबंध में हमने अपने जो विचार प्रकट किए हैं, उनसे हमारी धारणा यही है कि रसराज ललित ललाम से पहले बना, और इसी ग्रंथ की सुख्याति से लाभान्वित होकर मतिराम का बूंदी आदि दरबारों में सम्मान होने लगा। हमारी उपर्युक्त धारणा की पुष्टि निम्न-लिखित कारणों से और भी होती है- (१) कविजन की अधिक शृंगारमयी कविता युवावस्था में ही बनती है। कई कवियों के प्रथम ग्रंथ शृंगार-रस-संबंधी हैं । केशव- दास की रसिक-प्रिया और दासजी का शृंगार-निर्णय ऐसे ही ग्रंथ हैं। ललित ललाम की अपेक्षा रसराज विशेष शृंगारमय है। मतिरामजी ने संभवतः रसराज युवावस्था में बनाया, और यह उनकी प्रारंभिक रचनाओं में से एक है। फिर भी वह ललित ललाम से प्रौढ़ है, इसका कारण कवि की अवस्था, रुचि और विषय की अनुकूलता है। (क) पर विचार करते समय हमने दिखलाया है कि प्रथम रचना भी कवि की सर्वोत्कृष्ट रचना हो सकती है, जैसे गोस्वामी तुलसीदास का रामचरित मानस । (२) यदि हम रसराज को ललित ललाम के बाद बना हुआ मानें, तो कहना पड़ता है कि रसराज की रचना मतिराम की वृद्धा- वस्था में हुई। वृद्ध मतिराम को रसराज में दिए रसीले भावों का बनानेवाला मानना कुछ खटकता है। घोर शृंगारी कवि भी ५० वर्ष की अवस्था के बाद क्रम से शृंगार से विरक्ति प्रदर्शित करने लगते हैं। काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा से प्रकाशित भूषण-ग्रंथा- वली में दिए भूषण के समय पर जिस कोटिक्रम से विचार किया गया है, उससे रसराज की रचना मतिराम की सत्तर और अस्सी वर्ष
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