पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२४८

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मतिराम-ग्रंथावली

Ritamination Sapnasainst २४४ मतिराम-ग्रंथावली सब पट-भूषन रु बारन बतीस कहै, बाइसहु कति रु दए चउ सहस दाम; गेहहि इते गज निबाहन बहुरि दए, ____पाटनि के प्रांत के रिरी रु चिरी दुव गाम । भाऊ भूमिपाल अभिलाष 'मतिराम' को यों पूरन बिरचि भेद्यो जगती जगाय जस; भौन-भौन 'ललितललाम' हू बिदित भयो, पढ़न-पढ़ावन मैं सुकबिन रम्य रस।" मतिरामजी का कवित्व-यश सुनकर भावसिंहजी के भाई भगवंतसिंह ने भी इन्हें बुला भेजा था, परंतु इन्होंने बूंदी-राज्य के विरोधी भगवंत सिंह के दरबार में जाना अस्वीकार कर दिया। ___ यदि नृपशंभु वास्तव में शंभाजी हों, तो मानना पड़ता है कि मतिरामजी सतारागढ़ भी जाया करते थे। वहाँ से भी इनको अच्छी अर्थ-प्राप्ति हुई होगी। शिवसिंहसरोज में मतिराम का सतारागढ़ के सोलंकी राजा शंभुनाथ के यहाँ जाना भी लिखा है। सतारागढ़ के सोलंकी राजा शंभुनाथ कौन थे, इस विषय में हमें संदेह था। सो हमने इस विषय में हिंदी-साहित्य-संसार में प्रसिद्ध, परलोक गत, इतिहासज्ञ मुंशी देवी- प्रसादजी, मुंसिफ़ से पूछा। उन्होंने हमें जवाब में जो कुछ लिखा, वह इस प्रकार है-"शंभु या नृपशंभु सतारे के राजा शंभाजी मरहटा सेवाजी के बेटे थे। सोलंकी नहीं थे। यह भूल शिवसिंहसरोज से मिश्रबंधु-विनोद में भी, इतिहास न जानने से, आ गई है। सतारा बंबई-हाते में है। कोल्हापुर-महाराज नृपशंभु के घराने के हैं। नृपशंभु ने कविता 'कवि-कलश' से सीखी थी।" इस विषय में हम अपना मत अब भी नहीं निश्चय कर सके हैं।