पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२५२

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२४८ मतिराम-ग्रंथावली ट हुई है । 'रसराज' के बहुत-से उत्कृष्ट दोहे हमको 'सतसई' में मिले हैं, तथा 'ललितललाम' का मंगलाचरण भी इसमें मौजूद है। इस बात की कम संभावना है कि कवि ने 'ललितललाम' का मंगलाचरण अलग न बनाकर उसे अपनी 'सतसई' से उठाकर रख दिया हो । दुबेजी द्वारा जो संपूर्ण प्रति हमको मिली है, वह इस ग्रंथावली में छापी गई है। उसमें एक दोहा शिवाजी की प्रशंसा का भी है। tegshortenimeliminimiternamandakine फुटकल छंद A RaRachar 'मतिराम-सतसई' में जो एक दोहा शिवाजी की प्रशंसा का है, उसके अलावा शिवाजी की प्रशंसा में मतिरामजी के दो और छंद प्राप्त हुए हैं। वे भी आगे दिए जाते हैं। एक छंद छत्रशाल की प्रशंसा में भी है। वह छंद भी दिया जाता है। इनके पढ़ने से जान पड़ता है कि मतिरामजी को शिवाजी और छत्रशाल का भी आश्रय प्राप्त था। संग्रहों में कुछ और भी छंद मिलते हैं, जिनमें मतिराम का नाम आया है। पर हमें वे संदिग्ध समझ पड़े। इसलिये उन्हें यहाँ उद्धृत नहीं करते हैं। संभवतः मतिराम का जन्म-संवत् १६६० के लगभग हुआ था, और स्वर्गवास संवत् १७५० के लगभग हुआ- मोह-मद-छाके, बिरचे ते बर बाँके, ऐसे, बकसे सिवा के कबिराज लिए जात हैं। धावत धरनि धराधर-धुकि-धक्कन सों, चिक्करत जिन्हें देखि दिग्गज परात हैं। तामसी, तरुन ताम-रस तोरि 'मतिराम', गगन को गंगा में करत उतपात हैं। मंद गति सिंधुर मदंध में बिलंदु बिंदु, ग्यान-अरबिंद-कंद चंदहि चवात हैं ॥१॥ REET