anasiaaduindainsensundindia २६२ मतिराम-ग्रंथावली क्यों न कहौं दुख प्रान-प्रिया ? अँसुवानि रहे भरि नैन लजीले; कौन तिनैं' दुख है, जिनकें तुम-से मनभावन छैल छबीले ॥ ४४॥ anonetitualimitepanaScoumpearanmivosemommommonominervopranolnessmania Hari n manumaa n A S तुम सों कीजै मान क्यों, बहु नायक मन-रंज। बात कहत यों बाल के भरि आए दृग-कंज ॥ ४५ ॥ प्रौढ़ा-धीरा-लक्षण पिय सों प्रगट न रिस करै, रति ते रहै उदास । प्रौढ़ा-धीरा जानिए, सो निज सुमति बिकास' ।। ४६ ॥ उदाहरण वैसे ही चितैकै मेरे चित्त को चुरावती हो, बोलती हो वैसे ही मधुर मृदु बानि सौं ; कबि 'मतिराम' अंक भरत मयंकमुखी, __ वैसे ही रहत गहि भुज-लतिकानि सौं। चूमति कपोल, पान करत अधर-रस, - वैसे ही निहारियत सकल कलानि सौं ; कहा चतुराई ठानियत ? प्रानप्यारो तेरो मान जानियत रूखी मुख-मुसकानि सौं ॥ ४७ ।। ढीली बाहुन सों मिली, बोली कछ न बोल । सुंदरि मान जनाय यों लियो प्रानपति मोल ।। ४८ ॥ प्रौढ़ा-अधीरा-लक्षण डरु दैक प्रिय को प्रिया देय सुमन की मारु। प्रौढ़ अधीरा कहत हैं, ताहि सुकबि मति' चारु ॥४९॥ १ तुम्हैं, २ विलास, ३ गहत रहि, ४ निहारी रीति, ५ सुमति कवि । छं० नं० ४५ मन-रंज=मनरंजन । छं० नं० ४७ रूखी मुख- मुसकान कृत्रिम मुसकराहट, जिसमें प्रेम का अभाव झलकता हो । छं० न० ४९ सुमन की मारु=फूलों से मारना। E - 52 ..
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