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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२६५

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रसराज

Ga V ARNERATION रसराज अजौं उड़ावत ही नहीं, पीर न होत सभाग। ठौर-ठौर या भौंर के डसे' अधर-दल-दाग ॥ ३९ ॥ मध्या-अधीरा-लक्षण मध्या कही अधीर तिय, बोलै बोल' कठोर । पियहिं जनावति कोप सो', बरनत कबि-सिरमौर ॥ ४० ॥ उदाहरण कोऊ नहीं बरजै ‘मतिराम,' रहो तित ही, जित ही मन भायो; काहेकौं सौंहैं हजार करो तुम, तौ कबहूँ अपराध न ठायो । सोवन दीजै, न दीजै हमें दुख, यों ही कहा रसवाद बढ़ायो; मान रहोई नहीं मनमोहन ! मानिनी होय, सो मानै मनायो । ४१॥ बलय पीठि, तरिवन भुजन, उर कुच-कुंकुम-छाप । तितें जाहु मनभावते, जितै बिकाने आप ॥ ४२ ॥V मध्या-धीराधीरा-लक्षण मध्या-धीराधीर तिय ताहि कहत सब कोय। पिय सौं कहिके बचन कछ, रोस जतावै रोय ॥ ४३ ॥ उदाहरण आजु कहा तजि बैठी हो भूषन ? ऐसे ही अंग कछु अरसीले; बोलती बोल रुखाई लिए 'मतिराम' सनेह सने न रसीले । १ लसे, २ बचन, ३ यों, ४ बकबाद, ५ जनावै, ६ मतिराम सनेह सुन ते रसीले । ये सब बातें झूठी हैं, असली अभिप्राय तो यह है कि आपका मुझ पर अनुराग नहीं है। छं० नं० ४१ सौंहैं=क़समें । ठायो=किया । रसवाद=प्रेम-विवाद । छं० नं० ४२ बलय =चूड़ी । तरिवन = तरयोना, कान में पहनने का आभूषण। छं० नं० ४३ रोस=रोष, गुस्सा ।