पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२६८

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मतिराम-ग्रंथावली

meema २६४ मतिराम-ग्रंथावली जेष्ठा-कनिष्ठा-लक्षण बरनत ज्येष्ठ-कनिष्ठिका, जहँ द्वै ब्याही नारि । प्रथम पियारी, दूसरी घटि प्यारी निरधारि ॥ ५५ ॥ उदाहरण बैठी एक सेज पै सलोनी मृगनैनी दोऊ, आय तहाँ प्रीतम सुधा-समूह बरसै ; कबि 'मतिराम' ढिंग बैठे मनभावन जू', दुहन के हीय-अरबिंद मोद सरसै ; आरसी दै एक सों कह्यो यों निज मुख देखौ, जामें बिधु-बारिज-बिलास बर दरसै ; दरप-सौं भरी वह दरपन देख्यो जौलौं, तौलौं प्रानप्यारी के उरोज हरि परसै ॥ ५६ ॥ बेनी गूंथत एक की नंदलाल चित-लोल। चूमत प्यारी के मधुर बिहँसत गोल कपोल ॥ ५७ ॥ परकीया-लक्षण प्रेम करै पर-पुरुष सौं, परकीया सो जान । दीय भेद ऊढ़ा कहत, बहुरि अनूढ़ा मान ॥ ५८ ।। ऊढ़ा-लक्षण ब्याही और पुरुष सौं, और सों रस-लीन । ऊढ़ा तासों कहत हैं, कबि-पंडित-परबीन ॥ ५९ ॥ १ बैठयो मनभावतो सो, २ हार, ३ अधर, ४ जे। छं० नं० ५५ घटि प्यारी ज्येष्ठा से कम प्यारी। छं० नं० ५६ हीय-अरबिंद-हृदयारविंद=हृदय-कमल । आरसी=आइना । बिधु- बारिज चंद्रमा और कमल । दरप=दर्प, अभिमान । दरपन=दर्पण, शीशा । छं० न० ५७ लोल=चंचल ।