पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२७५

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२७१
रसराज

रसराज २७१ तीसरी अनुसयना प्रीतम गए सहेट कौं जाने हेतुहि पाय । तृतिया अनुसयना कही, हौं न गई पछिताय ॥९१॥ उदाहरण साँझ समै ‘मतिराम' काम-बस बंसीधर, बंसीबट-तट पै बजाई जाय बाँसुरी ; सुमिरि सहेट बृषभानु की कुमारि'-उर, दुख अधिकानो भयो सुख को बिनासू री। सर-सौ समीर लाग्यौ, सूल-सी सहेली सब, विष-सो बिनोद लाग्यो, बन-सो निवासुरी; ताप चढ़ि आयो तन, पीरी पर आई मुख, ___ आँखिन के ऊपर उमगि आए आँसु री ॥९२।। छरी सपल्लव लाल कर लखि तमाल की हाल। कुम्हिलानी उरसाल धरि फूल-माल ज्यों बाल ।।९३।। गणिका-लक्षण धन दै जाके संग मैं रमें पुरुष सब कोइ। ग्रंथन को मत देखि के गणिका जानहु सोइ ॥९४॥ उदाहरण लाल कर-चरन रदन-छद नख लाल, मोतिन की रदन रही है छबि छाइ कै; कवि 'मतिराम' मुख सूबरन रूप रहि, ___ रूप-खानि मुसकानि सोभा सरसाइ कै। १ कुंवरि, २ गूंदन, ३ देह सुबरन रूप जानि । छं० नं० ९२ भयो सुख को बिनासु री=भरी सुख का नाश हो गया । बन-सो निवासु री=अरी निवासस्थान जंगल-सा लगने लगा। पीरी परि आई मुख =मुख पीला पड़ गया। उमॅगि आए आँसुरी= अरी आँसू छलक आए।