e २७० मतिराम-ग्रंथावली S m 3- staleleriotional ARDARORA Campainmram Inadimanokar Melanies उदाहरण आई रितु पावस अकास आठौं दिसन मैं, सोहत स्वरूप जलधरन की भीर को ; 'मतिराम' सूकबि कदंबन की बास जूत, सरस बढ़ावै रस परस समीर को। भौन ते निकसि बृषभानु की कुमारि' देख्यो, ता समें सहेट को निकुंज गिरयो तीर को ; नागरि के नैननि तें नीर को प्रबाह बढ़यो, निरखि प्रबाह बढ्यो जमुना के नीर को ॥८६॥ ग्रीषम-रितु मैं देखि के बन मैं लगी दुवारि । एक अपूरब बात यह, जरत हिए बर नारि ॥८७॥ दूसरी अनुसयना होनहार संकेत को जहँ अभाव उर-आनि। अनुसयना कहिए यहौ हिए दुखनि की खानि ॥८॥ उदाहरण बेलिन सों लपटाय रही है तमालन की अवली अति कारी ; कोकिल-केकी कपोतन के कुल केलि करैं जहाँ आनंद भारी। सोच करो जिन, होहु सुखी ‘मतिराम' प्रबीन सबै नर-नारी ; मंजुल बंजुल-कुंजन में धन पुंज सखी ! ससुरारि तिहारी॥८९।। केलि करें मधुमत्त जहँ घन मधुपन के पुंज । सोच न कर तुव सासुरे सखी ! सघन बन-कुंज ॥९०॥ १ कुंवरि, २ तासु में, ३ दवाँरि, ४ सोच कर जो नारि, ५ होय हिये दुख भारि, ६ कूक । छं० नं० ८६ सहेट=प्रणयियुग्म के मिलने का निर्जन एकांत स्थल । छं० न० ८९ बंजुल=बेत या अशोक ।
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