पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२८२

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aims s se maithalaameramanane meanina E २७८ मतिराम-ग्रंथावली लिखै कर के नख सौं पग को नख', सीस नवाय के नीचे ही जोवै; बाल नबेली न रूसनो जानति, भीतर भौन मसूसनि रोवै ।। १२३॥ बाल सखिन की सीख त मान न जानत ठानि । पिय बिन आगम भौन मैं बैठी भौहें तानि ।।१२४॥ मध्या-खंडिता-उदाहरण जावक लिलार, ओठ अंजन की लीक सोहै, खैये न अलीक लोक-लीक न बिसारिए; कबि 'मतिराम' छाती नख-छत जगमगै, डगमगै पग सूधे मग मैं न धारिए। कसकै उघारत हौ पलक पलक यातें, पलका पै पौढ़ि स्रम राति को निवारिए; अटपटे बैन मुख बात न कहत बने, __लटपटे पेंच सिर-पाग के सुधारिए ॥१२५॥ कोऊ करो" कितेक यह तजो न टेव गुपाल । निसि औरनि के पग परो दिन औरनि के लाल ॥१२६।। प्रौढ़ा-खंडिता-उदाहरण प्रीतम आए प्रभात प्रिया मुसकाय उठी दग सों दग जोरै; आगे कै आदर सौं, 'मतिराम' कहै मृदु बैन सुधा-रस बोरै । १ पा नख को लिखै पानि नखै, २ रूसिबो, ३ मौन, ४ खैयन अलीक, ५ पल याते पलका मैं पौढ़ि स्रम राति के रमन को निवारिए, ६ लटपटे पेंच कछु बात न कहत बन लटपटे पेंच सिर पाग के सँवारिए, ७ कर, ८ हु, ९ तिया। कसकै उघारत हौ किस प्रकार से नेत्र खोलते हो, जोर लगा- कर नेत्र खोलते हो । लटपटे पेंच =गड़बड़ लिपटे हुए पगड़ी के फंदे । छं० नं० १२५ खैये न अलीक लोक-लीक न बिसारिए=झूठी बात कह- कर लोक-मर्यादा मत बिगाड़ो।