२९४ मतिराम-ग्रंथावली जोबन-मदगज मंद गति, चली बाल पिय'-गेह । पगनि लाज-आँदू परी, चढ़यो महावत-नेह ॥१९४॥ प्रौढ़ा-अभिसारिका-उदाहरण सहज सुबास जुत देह की दुगुन दुति, दामिनी दमक दीप केसरि कनक तैं; 'मतिराम' सुकबि सरस' सुकुमार अंग, : सोहत सिँगारु चारु जोबन-बनक तै। सोयबे को सेज चली प्रानपति प्यारे पास, जगत जुन्हाई जोति हँसन तनक तैं; ... चढ़त अटारी गुरु लोगन की लाज प्यारी, __ रसना दसन दाबै रसना-झनक तें ॥१९५॥ सजि सिँगार सेजहि चली, बाल प्रान -पति प्रान । चढ़त अटारी की सिढ़ी, भई कोस परमान ॥१९६॥ sagar Sainamainamainamainmediatime Paneerintenamel Puranas w adesORN ANESIUMusiciaom alien MARCH P १ पति, २ साँकर, ३ चढ़ी, ४ सुमुखि, सिरीष, ५ जहाँ । छं० नं० १९४ आँदू=लंगर-साँकल । जोबन-मदगज नेह=तरुणी नायिका ने जब अभिसार किया तो उसकी गति मंद थी-लज्जा के मारे उसके पैर आगे न पड़ते थे पर प्रेम उसे किसी प्रकार आगे लिए ही जाता था। उसकी दशा उस मंद गति हाथी के समान थी जिसके पैरों में लंगर पड़े रहने से उसका आगे बढ़ना कठिन हो पर जिसे महावत ठेलकर आगे बढ़ा रहा हो । छं० नं० १९५ रसना दसन दावै रसना-झनक त=अटारी पर चढ़ते समय नायिका के कमर की करधनी बजती है इससे नायिका को गुरु-जन की लज्जा लगती है और वह अपनी जीभ दाँतों-तले दबाती है। रसना=१ करधनी, २ जिह्वा । छं० नं० १९६ चढ़त अटारी की सिढ़ी, भई कोस परमान=लज्जा और संकोच से नायिका को सीढ़ी पर चढ़कर छत तक पहुँचने में इतना समय लगा मानो सीढ़ी कोस- भर लंबी रही हो। osta
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