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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२९७

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२९३
रसराज

nama रसराज २९३ ___ अभिसारिका-लक्षण पियहि बुलावै आप, कै आपहि पिय पै जाय । ताहि कहत अभिसारिका, जे प्रबीन कबिराय ॥१९०॥ मुग्धा-अभिसारिका-उदाहरण बातन जाय लगाय लई रस-ही-रस के मन हाथ के' लीनो; लाल! तिहारे बुलवाने को 'मतिराम' मैं बोल कह्यो परबीनो। बेग चलो, न बिलंब करो, लखि बाल-नबेली को नेह नबीनो; लाज भरी अँखियाँ बिहँसी, चली बोल कह्यो, बिन उत्तर दीनो॥ १९१॥ चली अली नवलाहि लै पिय पै साजि सिँगार । ज्यौं मतंग अँड़दार को लिए जात गँड़दार ॥१९२॥ मध्या अभिसारिका उदाहरण बैठि रहे ‘मतिराम' लला घर भीतर साँझहि तें अनुरागी; बानिक सौं बनि चारु सिँगारनि आई सुहागिनि प्रेम सौं पागी। प्यारे कह्यो हँसि आइहि सेजहि, प्यारी की जोति बिलासनि जागी; नैन नवाय रही मुसकाय कै, हार हिए को सँवारन लागी । १९३॥ १ कै, २ बलि, ३ आइए । छं० नं० १९१ मन हाथ के लीनो अपने वश में कर लिया । लाज भरी उत्तर दीनो=जब सखी ने नायिका से लाल को बुलाने के लिये कहा तो उसने लजीली आंखों से विहँसते हुए विना कुछ उत्तर दिए सखी से चल कह दिया। छं० नं० १९२ अँड़दार=अड़ने वाला । गड़दार हाथी को सोटों से मार-मारकर ले जानेवाले ।