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२९८
मतिराम ग्रंथावली

२९८ मतिराम-ग्रंथावली MEETICE J mania तु न बह को पठाय अली' ! यह, देख दहन की प्रीति सहाई; रोए-से, रोचन मोए-से लोचन, सोए न सोचन रैन बिताई।। २०८॥ अबहीं लै मिलि मोहि सखि! चलत आज ब्रजराज। अँसुवन राखति रोकि कैं, जियहि निकासति लाज ॥२०९॥ प्रौढ़ा-प्रवत्स्यत्प्रेयसी-उदाहरण मलय-समीर लागौ चलन सुगंध सीरो, पथिकन कीने परदेसन ते आवने; 'मतिराम' सुकबि समूहनि सुमन फूले, कोकिल-मधप लागे बोलन सहावने । आयो है बसंत, भए पल्लवित जलजात, तुम लागे चलिबे की चरचा चलावने; रावरी तिया को तरवर, सरवरन के, किसलै-कमल हैहैं बारक बिछावने ॥२१०॥ कोपनि तें किसलैं जब होय कलिन तें कौल। तबहीं चलियो चलन की चरचा नायक नौल ॥२११॥ E Sundeinance १ अरी, सखी, २ राति, ३ तब चलाइयो। छं० नं० २०८ चौथी विवाह-सबंधी एक रीति जिसके अनुसार दुलहिन पहले बार पति के यहाँ से पिता के घर जाती है। यह रीति पत्नी के पति के घर जाने के थोड़े ही दिनों बाद पूरी की जाती है। रोचन मोए-से लोचन=रोली में रँगे हुए से नेत्र, रक्त-वर्ण नेत्र । छं० नं० २१० पल्लवित जलजात हरे-भरे कमल । रावरो तिया को... बिछावने तुम्हारी स्त्री की सेज पर जो तरुवरों के किसलय और सरोवरों के कमल बिछाए जायँगे उनसे उसके शरीर को दाह पहुँचेगा अर्थात् शीतलोपचार उलटा दाहक होगा और यह सब होगा वियोग की बदौलत । MISHREETAHSHAR